जमशेदपुर : बिष्टुपुर स्थित जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज के अंग्रेजी विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेब कान्फ्रेंस का उद्घाटन महामहिम राज्यपाल सह झारखण्ड राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को किया। सुबह साढ़े ग्यारह बजे गूगल मीट ऐप्लीकेशन के माध्यम से जुड़ीं मुख्य अतिथि राज्यपाल ने कहा कि जमशेदपुर वीमेंस काॅलेज को आयोजित स्कोप एण्ड प्राॅस्पेक्ट ऑफ ट्रांसलेशन ऑफ ट्राइबल लैंग्वेज एण्ड लिटरेचर इन रिसर्च विषय पर इस दो दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के आयोजन के लिए बधाई दिया। आज लगभग पूरी दुनिया नोवेल कोरोना वायरस से ग्रस्त है। हमारा देश व राज्य भी इस भीषण समस्या से जूझ रहा है। हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर ही वर्तमान में इस समस्या से निज़ात पा सकते हैं। हमारे वैज्ञानिक वैक्सीन निर्माण की दिशा में सक्रियता से जुटे हुए हैं। आशा है कि जल्द ही सुखद परिणाम हम सबके सामने होंगे।
नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) के कारण हम लोग अभी प्रत्यक्ष तौर पर नहीं जुट सकते हैं, संगोष्ठी नहीं कर सकते हैं, यहांं तक की शिक्षण कार्य भी ऑनलाइन हो रहे हैं। ऐसे में हमलोग आज इस संगोष्ठी के उद्घाटन कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हिस्सा ले रहे हैं। राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आज का विषय अत्यन्त प्रासंगिक है। विशेषकर, ऐसे समय जहांं देश में नई शिक्षा नीति लाई गई है। इसके अन्तर्गत ज्ञान आधारित इस युग में मातृभाषा को अहम स्थान दिया गया है। ऐसे में हम सकते हैं जनजातीय तथा क्षेत्रीय भाषा में निहित ज्ञान-परंपरा से अन्य भाषा-साहित्य के बीच संवाद आवश्यक है तभी हम एक-दूसरे की संस्कृति और संवेदना को समझ सकेंगे। संवाद से विवाद समाप्त होते हैं। प्रेम और मेलजोल बढ़ता है। यह भाईचारा व मेलजोल हमें मजबूत करता है तथा हमारे समाज, राज्य और राष्ट्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सशक्त बनाता है। जनजातीय भाषा, संस्कृति व ज्ञान के साहित्य को हिन्दी, अन्ग्रेजी व अन्य भारतीय तथा विदेषी भाषाओं में अनुवादित करके सामने लाने की जरूरत है। इससे न केवल जनजातीय समाज को मुख्यधारा में लाना सहज होगा, बल्कि जो मुख्यधारा का समाज है, वह भी जनजातीय संस्कृति और ज्ञान की परंपरा से बहुत कुछ सीखकर एक बेहतर समावेशी मानव-समाज की ओर अग्रसर होगा।
कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू ने वीमेंस काॅलेज की वर्तमान प्राचार्या और कोल्हान विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो0 शुक्ला महांती को शुभकामना देते हुए कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में इन दोनों भाषाओं की अपनी-अपनी लिपियों में पाठ्यपुस्तकों के प्रकाशन का काम कराया था। आज भारतीय संविधान की अधिसूचित भाषाओं में संताली भाषा व साहित्य पूरी गरिमा के साथ मौजूद है। साहित्य अकादमी पुरस्कारों से संताली के लेखक व लेखिकाएं सम्मानित हो रहे हैं। जरूरी है कि युवा पीढ़ी में साहित्य का संस्कार और संस्कृति का आदर पैदा हो। संगोष्ठी केवल बौद्धिक बहस का ही स्थान नहीं होती बल्कि संस्कार व चरित्र निर्माण के लिए भी प्रेरणादायक होती है। संगोष्ठी की सफलता इसमें है कि यहांं से जाने के बाद युवापीढ़ी में अपनी भाषा, साहित्य व संस्कृति की सुरक्षा तथा सम्मान की भावना और प्रबल हो तथा अन्य भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रति भी उतना ही स्नेह-भाव बढ़े। हो और संताली भाषा का व्याकरण अन्य भाषाओं के व्याकरण की अपेक्षा अधिक वस्तुनिष्ठ और वैज्ञानिक है। यहांं दो सर्वनामों को संयुक्त रूप से लिखने का भी प्रावधान है। यह अद्भुत है।
भाषा की विजिबिलिटी बढ़ाने के लिए अनुवाद आवश्यक है: प्रो. ए के मिश्रा
कान्फ्रेंस के बीज वक्ता सीआईएल, मैसूर के पूर्व निदेशक व शिलांग विश्वविद्यालय के अंग्रेजी प्रोफेसर डॉ ए के मिश्रा ने कहा कि आदिवासी भाषा तभी विकसित होगी जब उसकी विजिबिलिटी बढ़े। विजिबिलिटी तभी बढ़ेगी जब उसका अनुवाद हो। इसलिए आदिवासी भाषा व साहित्य के अनुवाद को भाषा, शिक्षण, संस्कृति, साहित्य आदि के बराबर ही महत्व देते हुए काम करना चाहिए। टेक्स्ट बुक में सिर्फ भाषा ही जनजातीय न रहे बल्कि उसका कंटेंट भी जनजातीय जीवन से जुड़ा हो।
एक भारत श्रेष्ठ भारत के लिखने में अनुवाद की बड़ी भूमिका है: डॉ तारिक़ ख़ान
दूसरे रिसोर्स पर्सन के रूप में सीआईएल, मैसूर में नेशनल ट्रांसलेशन मिशन के मिशन इंचार्ज डॉ तारिक़ ख़ान ने बताया कि सीआईएल द्वारा झारखंड सहित कई राज्यों की भाषाओं में अनुवाद कराये गये हैं।यह लगातार जारी है। गंभीर अनुवादक इस मिशन से जुड़कर आर्थिक सहयोग भी ले सकते हैं और गुणवत्ता पूर्ण अनुवाद सुनिश्चित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल टेक्नोलॉजी पहले जहां जनजातीय भाषाओं के विकास में बाधक थी, अब वहीं उसके विकास का प्रमुख जरिया बन गयी है। फाॅन्ट और साॅफ्टवेयर के स्तर पर तो सहूलियत हुई ही है, लोकलाइजेशन ऑफ इकोनोमी, एक भारत श्रेष्ठ भारत जैसी योजनाओं के फलीभूत होने में भी अनुवाद की बड़ी भूमिका सामने आई है। उन्होंने जनजातीय भाषा साहित्य के अनुवाद में आने वाली चुनौतियों और संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला।
प्राचार्या प्रो डॉ शुक्ला महांती ने महामहिम राज्यपाल व वक्ताओं का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि हम काॅलेज में ट्रांसलेशन स्टडी को बकायदा कोर्स में शामिल कर रहे हैं। इसमें जनजातीय भाषा और साहित्य की रचनाओं का अनुवाद योग्य फैकल्टी की देखरेख में छात्राएँ करेंगी। उन्हें भाषा के स्तर पर इस तरह तैयार कराया जाएगा कि स्वदेशी कंपनियों और एमएनसी में भी रोजगार पाने में आगे रहें।